Monday, June 29, 2009

क्या क्या करे कविता ?






मौनता को शब्द देकर शब्द में जीवन संजोकर
हमें जीवन जीना सीखाती है कविता
घोर तम में जी रहे के घाव पर मरहम लगाकर
नई रोशनी की किरण देती है कविता
बिछडे मन को मिलाकर उजडे घर को बसाकर
जीवन संघर्ष करना सीखाती है कविता
शिशु की किलकारियों का कभी उत्सव मनाकर
जीवन की शुरुआत करना सीखाती है कविता
फूलवारी में फूलों के लिए तितलियां बनकर
फूलों की तरह महकना सीखाती है कविता
जहां ईश्वर ना पहुंचे उन सभी जगहों पर जाकर
बहुत कुछ हमें सीखा देती है कविता
जब पूरी दुनिया गहरी नींद में सोये तब कवि को जगाकर
अपनी कल्पना के भाव से दुनिया सजाती है कविता

कह नहीं सकते



इस शहर में तेरी सोच बदल जाये कह नहीं सकते
इस चेहरे पर दूसरा चेहरा लग जाये कह नहीं सकते
यह संकेत, अफवाएं और यह संदर्भ, घटनाएं
यह पूरा नक्शा कब बदल जाये कह नहीं सकते
मेरी आवाज पर बंदिशें लगाना इतना आसां नहीं
तुम्हारा साज कब बदल जाये कह नहीं सकते
जिनके घर शीशे के हो वो जरा संभल कर रहे
यहां किस पल में क्या हो जाये कह नहीं सकते

योग्यता



माता-पिता जीवित थे तब
उन्हें
अपमानित कर घर से बाहर किया
और अब
उनके मरने के बाद
उनकी तसवीर को देख
नीर बहाते उनकी ये संतानें
ऐसे कपूत संतानों को क्या कहें ?
तुम बचपन में जब लाचार थे तब
तुझे जिसने पाला वे माता-पिता
बुढापे में लाचार बने तब
उन्हें भी संभालने का
कर्तव्य निभाने जितना
योग्य तु भी बनना
कुत्ते पर हाथ फेरने वाले को
कुत्ता भी वफादार रहता है
क्या तुझ पर हाथ फेरने वाले माता-पिता को
वफादार रहने जितनी योग्यता तु नहीं रख सकता?