Thursday, August 20, 2009

पता चला है

तुम्हारी आंखों की हम पर नजर हो गई है
हमारी जिन्दगी तो गरीबों की सफर बन गई है
इस देश के आधे चमन में फूल क्यों खिलते नहीं?
इर्ष्या के पतझड की देखो असर हो गई है
स्वर्ग में बापू से हम फरियाद क्या करे?
आजादी के बंटवारे में कमी रह गई है
अन्याय की आंधी उठी है, वेदना है चारो तरफ
आंसुओं के समंदर में आंखें सभर हो गई है
ओ! न्याय की देवी बता, तेरे तोल को यह क्या हुआ?
पैसे के झुकाव की तु अब कबर बन गई है
देश की मिल्कियत में है हिस्सा सबका एक समान
बस्ती हमारी समृद्धि से लेकिन पर हो गई है

राजमार्ग पर

वेदना, व्यथा, अभाव, घाव, राजमार्ग पर
ला, सब कुछ यहां बिछा दे राजमार्ग पर
संकरी सडक यहां कहीं भटक ना जाना तु!
उस गली-कुचे को त्याग आ तु राजमार्ग पर
कब तब रहेगा फूटपाथ पर तु धुआं-धुंआ?
लाल सूरज की धधक जगा तु राजमार्ग पर
निकल मूषक की जमात से बुलंद खुद को बना
दे नगाडे पर धाव, आवाज उठा राजमार्ग पर
राजमार्ग है तु ही, तेरा ही यह पर्याय है
अन्याय के लिए लडने एक हो राजमार्ग पर