Saturday, April 18, 2009

मुश्किल

कभी मुश्किल बन जाती मुश्किल है
मंजिल भी हो जाती मुश्किल है
खुद हमारे पदचिन्ह हमारी मुश्किल बन जाते है
सभी मानते है कि मंजिल होती है मुश्किल
लेकिन पहले बाधाएं ही मुश्किल बन जाती है

Friday, April 17, 2009

जुते-चप्पल की हेट्रिक

आज के अखबार में ताजा छपी खबर
बीजेपी के संमेलन में हादसा कल भरी दोपहर
अपनी-अपनी डफली, अपना अपना राग
जनतंत्र में घुल गया है बस आग ही आग
सब दल के है सूर नए बदली सबकी चाल
आग लगाता-सा लगे ये चुनाव इस साल
लगता है इस भूचाल का होगा ना ठहराव
सियासत के समंदर की देखो डगमग होती नाव
उन्माद की सियासत में हाल हुए बेहाल
जूते से किया विरोध और करने लगे हलाल
भीतर दबी है आंधियां, है बाहर भी तूफान
देश के इतिहास में है तीसरा ये जूते की मार
सत्ता लालसुओं ये अब तो करो कबूल
फिर भी नहीं सुघरे तो जनता चटवायेगी धूल
जूता चुक गया मस्तक समय बना गंभीर
इन हादसों से तो समझो अब तो जनता की पीर
आप ही मियां मंगते द्वार खडे दरवेश
विश्व पटल पर इस शर्म में दर्ज हो गया देश
अब संमेलन में जाना बदलकर अपना भेष
वर्ना अबकी जनता के हाथों से नहीं बचोगे शेष
नेताओं के सामने लोग आ रहे है सरेआम
ऐसे में इस देश का क्या होगा अंजाम?
चर्चा है इस देश में अब होगी किसकी बारी
जनतंत्र की इस ताकत पर मैं तो जाऊं वारी

देर हो गई

जीवन में हर काम में देर हो गई
सुबह जल्दी उठने में देर हो गई
दोपहर के भोजन में देर हो गई
स्टेशन पहुंचने में देर हो गई
ऑफिस पहुंचने में देर हो गई
मंदिर जाकर मत्था टेकने में देर हो गई
चाहे यह सब बोलो
लेकिन, मरने में देर हो गई
ऐसा कोई नहीं बोल पायेगा

शिक्षा की खरीदी

खुद को शिक्षित
मानने वाले लोगों से
क्या मुझे
इस प्रश्न का उत्तर मिलेगा?
कि आपने पैसे से शिक्षा खरीदी है,
या शिक्षा से पैसा बनाया है?
यह देश तो ज्ञान बांटने के बावजूद
पैसा न लेनेवाले पंडितों का है
इसमें डोनेशन से ज्ञान खरीदने वाले,
कहां से घुसे?

Tuesday, April 14, 2009

नामर्द

अचानक वह मिला मुझे,
एक अनजान मोड पर
सिलसिला फिर शुरु हुआ
बातों का बातों पर
क्या हाल है इस दिल का?
बस चल रही है जिंदगी
कभी उपवास और कभी रोजों पर
दिल और मन दोनों भूखे है
पेट के नहीं,
प्रेम के, स्नेह के, आशा के
उसने पूछा - क्या मिलेगा
इस तरह के फांको से?
मिलना क्या है, हम तो
आदत डाल रहे है,
उस दिन की जिस दिन,
सब कुछ मिलेगा,
सिर्फ ‘बदले’ के नाम पे
बदला नहीं है लेना
हमारी आंख तो लगी है
सिर्फ ऐसी ही मौत पर
उसने भडकाया - क्या?
बदला लेने से हो डरते?
मर्द नहीं, नामर्द हो तुम मुझको लगते?
हम अगर
नामर्द है तो वे क्या है
जिन्होंने - मुझे डुबोया खून में
रक्षा के नाम पर
जिन्होंने - बो दिया हममें जहर
प्यार के नाम पर
उसने कहां - हां, इस युग में,
मर्दानगी की यही निशानी है
हां! मैं फिर भी नामर्द हूं
पर मुझे अपनी नामर्दी
तुम्हारी मर्दानगी से
अधिक प्यारी है
जय हिंद

Friday, April 10, 2009

जिंदगी क्या है जान जाओगे

ग़ज़ल क्या है, दर्द के समंदर में उतरकर देखो
शेर क्या है, किसी के गम में तडपकर देखो
जिंदगी क्या है, जान जाओगे दु:ख सहकर यारों
खुशी क्या है, इस जहां में तुम दिल लगाकर देखो

राग क्या है, मन की झील में नहाकर देखो
संगीत क्या है, सूरों को दिल में सजाकर देखो
जादू क्या है, जान जाओगे लय में डूबकर देखो
नशा क्या है, आत्मा संग दिल से गाकर देखो

भजन क्या है, प्रभु के शरण में समाकर देखो
सत्संग क्या है, गुरु के वचनों को अपनाकर देखो
बदल जायेगी दु:खों की दुनिया शांति पाओगे यारों
प्रभु की भक्ति में मन को तुम डूबाकर देखो

जीवन क्या है किसी दु:खी को तुम अपनाकर देखो
खुशी क्या है किसी के तुम काम आकर देखो
सुख मिलता है कैसे जीवनभर न समझ पाया कोई
किसी के गम में खुद को तुम लूटाकर देखो

रुप जिंदगी का

अटखेलियां कर रही है जिंदगी ख्वाबों में
और कभी सरक जाती है ये अंधेरों में
एक ख्वाब सजा रक्खा है मैंने दिल में
कभी तो सच होगा ये सच्चे आकार में
भावना, प्यार, द्वैष और तिरस्कार में
कभी यहां-कभी वहां टकरा रही हूं खींचातान में
दूर जगमगा रही है जो उस किरण में
देख रही हूं मैं जिंदगी को उस रूप में