जीवन में हर काम में देर हो गई
सुबह जल्दी उठने में देर हो गई
दोपहर के भोजन में देर हो गई
स्टेशन पहुंचने में देर हो गई
ऑफिस पहुंचने में देर हो गई
मंदिर जाकर मत्था टेकने में देर हो गई
चाहे यह सब बोलो
लेकिन, मरने में देर हो गई
ऐसा कोई नहीं बोल पायेगा
Friday, April 17, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
nahin aisa katai nahin hai jay shree jee main aise kai logon ko jaantaa hoon jo apno kee upekshaa kaa is kadar shikaar hue ki keh pade ki marne mein ab bahut der ho rahee hai .
मौत जिंदगी को एक पल नही देती और जिंदगी मौत को एक पल मे अपना सब कुछ देदेती है.
रामराम.
नमस्कार अजय जी और ताऊ जी.... मेरी कविता ‘देर हो गई’ पर आपने जो टिप्पणी की है उस बारे में मुझे कुछ कहना था.... आप तो मुझसे बडे है.... आदरणीय है.... कविता का मर्म है कि हम हर काम में देर करते है लेकिन मरने में देर क्यों नहीं करते.... जबकि मृत्यु ही सत्य है.... मृत्यु का संबंध मोक्ष से है.... लेकिन हम स्वार्थ में इतने अंधे हो गये है कि मृत्यु को स्वीकार करने से डरते है भागते फिरते है... और इसलिए कोई नहीं कहता कि मुझे मरने में देर हो गई....
Post a Comment