अचानक वह मिला मुझे,
एक अनजान मोड पर
सिलसिला फिर शुरु हुआ
बातों का बातों पर
क्या हाल है इस दिल का?
बस चल रही है जिंदगी
कभी उपवास और कभी रोजों पर
दिल और मन दोनों भूखे है
पेट के नहीं,
प्रेम के, स्नेह के, आशा के
उसने पूछा - क्या मिलेगा
इस तरह के फांको से?
मिलना क्या है, हम तो
आदत डाल रहे है,
उस दिन की जिस दिन,
सब कुछ मिलेगा,
सिर्फ ‘बदले’ के नाम पे
बदला नहीं है लेना
हमारी आंख तो लगी है
सिर्फ ऐसी ही मौत पर
उसने भडकाया - क्या?
बदला लेने से हो डरते?
मर्द नहीं, नामर्द हो तुम मुझको लगते?
हम अगर
नामर्द है तो वे क्या है
जिन्होंने - मुझे डुबोया खून में
रक्षा के नाम पर
जिन्होंने - बो दिया हममें जहर
प्यार के नाम पर
उसने कहां - हां, इस युग में,
मर्दानगी की यही निशानी है
हां! मैं फिर भी नामर्द हूं
पर मुझे अपनी नामर्दी
तुम्हारी मर्दानगी से
अधिक प्यारी है
जय हिंद
Tuesday, April 14, 2009
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2 comments:
बहुत सटीक बात कही. बहुत शुभकामनाएं
रामराम.
bahut hi sundar rachana.
ye word verification hata le to comment karne me aasani hogi.
___________________________"VISHAL"
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