Friday, November 7, 2008

गोधरा की हकीकत

यह कविता मैने गुजरात चुनाव दिसम्बर - 2007 में लिखी थी



एक किस्सा हम जो सुना रहे है, आया नया जमाना
यह पूरी तरह से सच है, ना हमने इसे भुनाया
कल जब गये हम किराना स्टॉर पर
खडी थी एक श्रीमती घूंघट ओढकर
बढे हुए दामों से चौंकी और बोली वह लाचार
इस महंगाई ने तो हमारा जीना किया दुश्वार
गोधरा के बाद हुए दंगों में मैंने पति गवाया
कैसे बताऊ बहना ! अपने बच्चों को कैसे पाला
बच्चे अभी बहुत छोटे है करुंगी कैसे काम
फिर उसने लिया अपने मंत्रीजी का नाम
हर चीज के दाम बढे फिर भी खरीदा है मजबूर
कैसे भरूं बच्चों की फीस, मेरी दुनिया है बेनूर
शिक्षा की जो बाते करते मंत्रीजी दो-चार
कलयुग का रावण क्या करेगा इनसाफ
भूखे, नंगे, अनपढ बच्चे बनेंगे जब बेकार
गुनाह करेंगे संगीन जो करना होगा स्वीकार
चोरी, हत्या, बलात्कार में गुजरात नंबर वन
हर हिन्दू के हाथ में आज थमा दी इसने गन
गांधी नेता बन गए कर के पर उपकार
सुनो, सुनो, मंत्रीजी ! गुजरात से सुरक्षित है बिहार
आमजनों की बातें सुनकर होता मुझको खेद
दर्द हुआ बहुत मुझको उन आंखों में नफरत देख
बौखला उठी वह महिला और कह दी ऐसी बात
इस चुनाव में मारेंगे हम भाजपा को लात
सुनो, सुनो ऐ नर-नारी तुम्हें सुनाऊं राग
कि अब पहचान जाओ मोदी का स्वांग
भाव विर्निमित है मोदी का ‘निर्मल गुजरात’ का ख्वाब
वह तब ही बच सकते है गर देते सत्ता त्याग
सत्ता मिले न मिले फिर भी होगा बडा अट्टहास
जागो, मोदी जागो जनता का टूट गया विश्वास
सत्ता की खातिर हमने देख ली उनकी प्यास
चुनाव में हारने के बाद मोदी होंगे बडे उदास
नारी नहीं सीमित घरों तक ना ही लोकसभा से दूर
सच कहूं तो यारों, ये हो गई ओर भी मजबूत
इस निगोडी महंगाई में हालत हो गई बूरी
यह कहानी सिर्फ यहां होती नहीं है पूरी
जय हिंद

1 comment:

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत सुंदर और यथार्थ परक विवेचन आपकी रचना के माध्यम से आपने प्रस्तुत किया है "सत्यमेव जयते"