मुंबई मैं आतंक से हमारा जंग हो गया
आतंक से घायल सारा हिन्दुस्तान हो गया
सत्ता पक्ष छोडने पे विपक्षी आपस में ठन गया
सरकार गिराना ही एक मात्र इनका कर्म हो गया
जन रक्षा के लिए आंखें मुंदना इनका धर्म हो गया
बारूद के रक्त से लाल आज देश का जमीर हो गया
सहायता का वचन देना ही नेताओं का कर्तव्य हो गया
कभी ना सोनेवाली मुंबई में आज लाशों का ढेर हो गया
फिर खाई मुंह की लेकिन सबक ना कोई सीखा
नेताओं के झूठे दिलासों से हिन्दुस्तान बेबस बन गया
ये दुनिया का मेला है यहां आदमी है कम
थोडी सी बची है आंखें जो हो जाती है नम
देख कर इन हालातों को आता होगा आंखों में पानी
लेकिन इसने हमारी आंखों में भर दी है शर्म
जिसके लिए शब्द नहीं है ये सच्ची है कहानी
ये मेरे देश की हकीकत है नहीं है कोई भ्रम
इन हालातों को देखकर कुछ ऐसा लगा
शायद इन्सान का इन्सान से अब विश्वास हटा
जय हिंद
Sunday, November 30, 2008
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2 comments:
......अद्भुत, भावों की सरस अभिव्यंजना. कभी हमारे 'शब्दशिखर' www.shabdshikhar.blogspot.com पर भी पधारें !!
इस गणतंत्र दिवस पर यह हार्दिक शुभकामना और विश्वास कि आपकी सृजनधर्मिता यूँ ही नित आगे बढती रहे. इस पर्व पर "शब्द शिखर'' पर मेरे आलेख "लोक चेतना में स्वाधीनता की लय'' का अवलोकन करें और यदि पसंद आये तो दो शब्दों की अपेक्षा.....!!!
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