आज मेरा देश हो रहा इस क्रिकेट पर बेहाल
अमीर ज्यादा अमीर हो रहा गरीब बना कंगाल
एक थी मां और एक था बेटा
बाप मर गया जब वह बहुत था छोटा
मां ने उसको पाला पोसा
यह किस्सा है भई बडा अनोखा
दिनभर की मजदूरी से उसके घर का चूल्हा था जलता
दो जून की रोटी जुटाकर ही उसका दिन था संभलता
जिस दिन मेच होता बेटा जाता नहीं था काम पर
जुआ खेलता था मां से लडकर क्रिकेट के नाम पर
क्रिकेट महज खेल नहीं अब बन गया व्यापार
हम किसी को क्या समझाये यह सब है बेकार
देश की प्रगति सिर्फ क्रिकेट तक सीमित रही
जिसकी प्रगति होनी चाहिए वह तो वही की वही
शिकवा नहीं मुझे इस खेल से कोई लेकिन
रंज है बडा उन क्रिकेटरों पर
जो चंद डोलरों में बिक जाते है
अपने देश को लगाकर दांव पर
हार-जीत से क्यों जोडे हम अपने देश को भला
हिंदुस्तां इतना सस्ता नहीं इसके लिए करुंगी मैं हरदम दुआ
32 करोड भूखे लोगों का यह देश है
फिर भी हम सब कहते है इंडिया ग्रेट है
जय हिंद
Sunday, November 30, 2008
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