Friday, April 17, 2009

जुते-चप्पल की हेट्रिक

आज के अखबार में ताजा छपी खबर
बीजेपी के संमेलन में हादसा कल भरी दोपहर
अपनी-अपनी डफली, अपना अपना राग
जनतंत्र में घुल गया है बस आग ही आग
सब दल के है सूर नए बदली सबकी चाल
आग लगाता-सा लगे ये चुनाव इस साल
लगता है इस भूचाल का होगा ना ठहराव
सियासत के समंदर की देखो डगमग होती नाव
उन्माद की सियासत में हाल हुए बेहाल
जूते से किया विरोध और करने लगे हलाल
भीतर दबी है आंधियां, है बाहर भी तूफान
देश के इतिहास में है तीसरा ये जूते की मार
सत्ता लालसुओं ये अब तो करो कबूल
फिर भी नहीं सुघरे तो जनता चटवायेगी धूल
जूता चुक गया मस्तक समय बना गंभीर
इन हादसों से तो समझो अब तो जनता की पीर
आप ही मियां मंगते द्वार खडे दरवेश
विश्व पटल पर इस शर्म में दर्ज हो गया देश
अब संमेलन में जाना बदलकर अपना भेष
वर्ना अबकी जनता के हाथों से नहीं बचोगे शेष
नेताओं के सामने लोग आ रहे है सरेआम
ऐसे में इस देश का क्या होगा अंजाम?
चर्चा है इस देश में अब होगी किसकी बारी
जनतंत्र की इस ताकत पर मैं तो जाऊं वारी

1 comment:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सटीक और सामयिक रचना. शुभकामनाएं.

कृपया अन्यथा ना लें , वर्ड वैरिफ़िकेशन हटा लें तो टिपणि कर्ताओं को आराम रहेगा और इससे कुछ फ़ायदा भी नही है.

रामराम.